Month: फरवरी 2021

हम ईश्वर नहीं हैं

पुस्तक मियर क्रिचियानिटी(Mere Christianity) में, सी.एस. लियुईस ने खुद से यह जानने के लिए कि क्या हम अहंकार महसूस करते हैं कुछ प्रश्न पूछने की सिफारिश की : “जब अन्य लोग मुझे कोई महत्त्व नहीं देते हैं, या मेरी अनदेखी करते हैं, . . . या सहायता करते हैं, इतराते हैं तो मैं इसको कितना नापसंद करता हूँ?” लियुईस ने अहंकार को “परम दुष्टता” के प्रतिनिधिरूप और घरों और राष्ट्रों में दुख के प्रमुख कारण के रूप में देखा l उन्होंने इसे “आत्मिक कैंसर” कहा जो प्रेम, संतोष और सामान्य ज्ञान की मूल संभावना को खा जाता है l
अहंकार युगों से एक समस्या रही है l परमेश्वर ने, नबी यहेजकेल के द्वारा, शक्तिशाली तटीय नगर सोर(Tyre) के अगुआ के अहंकार के विरुद्ध चेतावनी दी l उसने कहा कि राजा का अहंकार उसके पतन में बदल जाएगा : “तू जो अपना मन परमेश्वर-सा दिखाता है . . . मैं तुझ पर . . . परदेशियों से चढ़ाई कराऊँगा” (यहेजकेल 28:6-7) l तब वह जान जाएगा कि वह ईश्वर नहीं था, लेकिन नश्वर था (पद.9) l
अहंकार के विपरीत नम्रता है, जिसे लियुईस ने एक गुण के रूप में नामित किया है जिसे हम ईश्वर को जानने से प्राप्त करते हैं l लियुईस ने कहा कि जैसे-जैसे हम उसके संपर्क में आते हैं, हम “"ख़ुशी से विनम्र” बनते हैं, अपनी खुद की गरिमा के बारे में मूर्खतापूर्ण बकवास से छुटकारा पाने के लिए राहत महसूस करते हैं जो पहले हमें बेचैन और दुखी करता था l
जितना अधिक हम परमेश्वर की उपासना करते हैं, उतना ही अधिक हम उन्हें जानेंगे और अधिकाधिक अपने को नम्र कर सकते हैं l हम आनंद, नम्रता से प्रेम और सेवा करने वाले बन जाएँ l

गीत गाना याद रखें

नैन्सी गुस्तफ़सन, एक सेवानिवृत्त ओपेरा गायिका, उस समय तबाह हो गई जब उसने अपनी माँ से मिलने गयी और मनोभ्रंश(dementia) से उन्हें क्षीण होते हुए देखी l उसकी माँ अब उसे नहीं पहचानती थी और मुश्किल से बात कर पाती थी l कई महीनों तक उनसे मुलाकात करने के बाद, नैन्सी को एक विचार आया l उसने उनके सामने गाना शुरू कर दिया l उसकी माँ की आँखें संगीतमयी ध्वनियों पर झूम उठीं, और उन्होंने भी गाना शुरू कर दिया - बीस मिनट तक! तब नैन्सी की माँ हँसी, और मज़ाक में कहा जाए तो वे “गुस्तफ़सन परिवार के गायक” थे l नाटकीय परीवर्तन ने संगीत की शक्ति का सुझाव दिया, जैसा कि खोई यादों को जगाने के लिए कुछ चिकित्सक निष्कर्ष निकालते हैं l “पुराने पसंदीदा” गीत गाने को भी मूड को ताज़ा करते हुए, गिरावट, आकास्मिक कक्ष में जाना कम करते हुए, और शामक औषधि(sedative drugs) की आवश्यकता को कम करते हुए देखा गया है l
एक म्यूजिक-मेमोरी लिंक(music-memory link) पर अधिक शोध चल रहा है l फिर भी, जैसा कि बाइबल प्रगट करती है, गाने से मिलने वाला आनंद ईश्वर की ओर से एक उपहार है - और यह वास्तविक है l “याह की स्तुति करो क्योंकि अपने परमेश्वर का भजन गाना अच्छा है, क्योंकि वह मनभावना है, उसकी स्तुति करनी मनभावनी है” (भजन 147:1) l
सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र में, वास्तव में, परमेश्वर के लोगों से उसकी प्रशंसा के गीतों में अपनी आवाज उठाने का आग्रह किया जाता है l “यहोवा का भजन गाओ क्योंकि उसने प्रतापमय काम किये हैं” (यशायाह 12:5) l “उसने मुझे एक नया गीत सिखाया जो हमारे परमेश्वर की स्तुति का है l बहुतेरे यह देखकर डरेंगे, और यहोवा पर भरोसा रखेंगे” (भजन 40:3) l हमारा गाना हमें प्रेरित करता है लेकिन सुनने वालों को भी l काश हम सभी याद रखें : हमारा परमेश्वर महान है और प्रशंसा के योग्य है l

निराशजनक समाधान

सत्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, विलियम ऑफ़ ऑरेंज ने जानबूझकर अपने देश की अधिकांश भूमि को जलमग्न कर दिया l डच सम्राट ने हमलावर स्पेन के लोगों को खदेड़ने की कोशिश में इस तरह के कठोर उपाय का सहारा लिया l यह काम सफल नहीं हुआ, और खेती योग्य भूमि का एक विशाल महत्वपूर्ण हिस्सा समुद्र में डूब गया l वे कहते हैं, “निराशजनक समय निराशजनक उपायों की मांग करता है l”
यशायाह के दिन में, यरूशलेम निराशजनक उपायों की ओर मुड़ गया जब अश्शूरी सेना ने उन्हें धमकी दी l घेराबंदी सहने के लिए जल भंडारण व्यवस्था बनाने के साथ ही लोगों ने शहर की दीवारों को मजबूत करने के लिए घरों को भी तोड़ दिये l इस तरह के हथकंडे भले ही समझदारी के रहे हों, लेकिन उन्होंने सबसे अहम कदम को नजरअंदाज किया l “तू ने दोनों दीवारों के बीच पुराने पोखरे के जल के लिए एक कुण्ड खोदा l परन्तु तू ने उसके कर्ता को स्मरण नहीं किया, जिसने प्राचीनकाल से उसको ठहरा रखा था, और न उसकी ओर तू ने दृष्टि की” (यशायाह 22:11) l
आज हमारे लिए अपने घरों के बाहर एक असली सेना का सामना करने की संभावना नहीं है । ओसवाल्ड चैम्बर्स ने कहा, “संप्रहार(battering) हमेशा आम तरीकों से और आम लोगों के माध्यम से आते हैं l” फिर भी, इस तरह के संप्रहार वास्तविक खतरें हैं l शुक्र है, वे अपने साथ हमारी ज़रूरत के लिए पहले परमेश्वर की ओर मुड़ने के लिए उसका निमंत्रण लाते हैं l
जब जीवन की चिड़चिड़ाहट और रुकावटें आती हैं, तो क्या हम उन्हें परमेश्वर की ओर मुड़ने के अवसरों के रूप में देखेंगे? या हम अपने निराशजनक समाधान की तलाश करेंगे?

अलग ढंग से सोचना

कॉलेज के दौरान, मैंने वेनेजुएला में गर्मियों का एक बड़ा हिस्सा बिताया l भोजन अद्भुत था, लोग दिलचस्प थे, मौसम और आतिथ्य मनोहर था l पहले या दो दिनों के भीतर, हालांकि, मैंने माना कि समय प्रबंधन पर मेरे विचार मेरे नए दोस्तों द्वारा साझा नहीं किए गए थे l अगर हम दोपहर को भोजन करने की योजना बनाते थे, तो इसका मतलब था 12:00 से 1:00 बजे के बीच कहीं भी l सभाओं या यात्रा के लिए भी उसी तरह : समय सीमा कठोर समय-पालन के बिना सन्निकटन(approximation) थे l मैंने महसूस किया कि “समय पर होने” का मेरा विचार मेरी समझ से कहीं अधिक सांस्कृतिक रूप से बना था l
आमतौर पर हमारे कभी ध्यान दिए बिना, हम सभी अपने चारों-ओर की सांस्कृतिक मूल्यों द्वारा आकार पाते हैं l पौलुस इस सांस्कृतिक बल को “संसार” कहता है (रोमियों 12:2) l यहाँ, “संसार” का अर्थ भौतिक संसार नहीं है, बल्कि यह सोचने के तरीके को संदर्भित करता है जो हमारे अस्तित्व में व्याप्त है l यह निर्विवाद मान्यताओं और मार्गदर्शक आदर्शों को संदर्भित करता है जो हमें केवल इसलिए सुपुर्द किया गया है क्योंकि हम एक विशेष स्थान और समय में रहते हैं l
पौलुस सचेत करता है कि हमें “इस संसार के सदृश” नहीं बनना है l इसके बजाय, “[हमारे] मन के नए हो जाने से [हमारा] चाल-चलन भी बदलता जाए” (पद.2) l निष्क्रिय रूप से सोचने के तरीकों को ग्रहण करना और विश्वास करना जो हमें लपेट लेती है, हमें परमेश्वर के सोचने के तरीके को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाने के लिए बुलाया गया है और सीखने के लिए कि कैसे उसकी “भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा” समझें (पद.2) l काश हम हर एक दूसरी आवाज़ की जगह परमेश्वर का अनुसरण करना सीखें l